Wednesday, 23 March 2022

युद्ध व्यवसायी

(घनाक्षरी छंद) युद्ध व्यवसायी नीति दंश करोना का अभी गया भी नहीं कि देखो, साये युद्ध वाले नभ पर दिखने लगे। बंद किए बैठे थे दुकान हथियारों वाले, झाड़ पोंछ कर बही-खाते लिखने लगे। धूल फाँकने लगी थीं मँडियां करोना में जो, थोप कर युद्ध बोल बोल चीखने लगे। खुद तो न लड़ें पर पीछे हम खड़े कहें, भरती तिजोरियों के मंत्र सीखने लगे। 23/3/22 ~अजय 'अजेय'।

गिरगिटी सपने

(चौपई छंद)
गिरगिटी सपने

कुछ दिन पहले की है बात।
छोड़ गये थे गिरगिट साथ।।
कोई सइकिल पर चढ़ जात।
कोई चला थामने हाथ।।

बदले थे गिरगिट जो रंग।
देख रहे, जनमत हो दंग।।
बहस रहे थे कसते व्यंग।
हुये मुँगेरी सपने भंग।।

10/3/22  ~अजय 'अजेय'।
<10>

होलिका दहन

<(कुण्डलिया छंद)> होलिका दहन <होली का हैप्पी हुई,जल गै जिसके बाल। साजिश सब चौपट भई,फेल दुष्ट की चाल।। फेल दुष्ट की चाल,जल गई बहिना प्यारी। जली बुराई संग श्रृंगारी गहना धारी।। कह अजेय कविराय,न चढ़िये छद्मी डोली। जल जायेंगे ऐसे, जैसे जलती होली।। <18/3/22 ~अजय 'अजेय'।>

Monday, 21 March 2022

ग्रामीण संस्कार

चित्र लेखन
(विष्णुपद छंद)
ग्रामीण संस्कार 
आते जाते राही का भी, मान बढ़ाते हैं,
कुटिया को ही हम तो अपने,  महल बनाते हैं।।
कौन पूछता है किसको अब, शहरी महलों में,
हम अंजानों को भी दिल से, गले लगाते हैं।।
12/3/22       ~अजय 'अजेय'।