प्रदूषण दिल्ली का ...
सफेद चादर ओढ़ कर
राजधानी सो रही है,
खतरों का रुख देखकर,
जनता सारी रो रही है।
प्रदूषण ऊँचे स्तर चढ़ कर,
इल्जाम औरों के सर मढ़कर,
दूषित राजनीति हो रही है,
दिल्ली खून के आँसू रो रही है।
साँस लेना दूभर है,
धुआँ पैमानों से ऊपर है,
आरोप-प्रत्यारोप की लड़ाई हो रही है,
और जनता इस दर्द को ढो रही है।
मगर मेरा सवाल है आपसे,
सरकार का क्या रिश्ता है इस पाप स?
क्या सरकार धुँये के बीज बो रही है?
या फिर हमसे ही यह चूक हो रही है?
पटाखे और बम किसने चलाये थे?
फसलों के डंठल क्या उसने जलाये थे?
जहर फैलाने में तो जनता की शुमार हो रही है,
तो सरकार कैसे गुनहगार हो रही है
अब भी चेतो तो परिस्थिति सुधर जाये,
आने वाली पीढ़ियों का जीवन सँवर जाये,
देखो तो, जवानी में ही जवानी खो रही है,
किसी को दिल, किसी को फेफड़े की व्याधि हो रही है।.
05 नवंबर 2016 ~~~अजय।
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