चुनाव का मौसम...
कितना अच्छा होता,जो हर माह चुनाव होते,
हर मतदाता का महत्व और अच्छे-अच्छे भाव होते।
किसी को भी न दुत्कारा जाता,
कमज़ोर,ग़रीब को भी सत्कारा जाता।
यदि भय होता अगले दिन कुर्सी जाने का,
तो हर कार्यकर्ता चाहता भी, कुछ कराने का।
सरकारी ख़जाने का पैसा, किसी की जेब में न जाता,
नेता जी का ध्यान भी टूटी सड़कों के फ़रेब पर जाता।
वादे करके भूल पाने का वक़्त न होता,
वोट पाने के बाद नेता घोड़े बेच कर न सोता,
एक और चाहत कि मात्र चुनाव जीतने से पेंशन न पकती,
तो किसी भी नेता जी की कभी, कार्यक्षमता न रुकती।
काश ! ऐसा होता कि हमारे भी असल के नाव होते,
न कि बस काग़ज़ी, ये हमारे ख़याली पुलाव होते।
न हम अपना मत किसी धर्म - जाति के लगाव खोते,
राजनैतिक अखाड़े में अपने भी कमाल के दाव होते।
काश..... कितना अच्छा होता......
11 फ़रवरी 17. ~~~ अजय।
कितना अच्छा होता,जो हर माह चुनाव होते,
हर मतदाता का महत्व और अच्छे-अच्छे भाव होते।
किसी को भी न दुत्कारा जाता,
कमज़ोर,ग़रीब को भी सत्कारा जाता।
यदि भय होता अगले दिन कुर्सी जाने का,
तो हर कार्यकर्ता चाहता भी, कुछ कराने का।
सरकारी ख़जाने का पैसा, किसी की जेब में न जाता,
नेता जी का ध्यान भी टूटी सड़कों के फ़रेब पर जाता।
वादे करके भूल पाने का वक़्त न होता,
वोट पाने के बाद नेता घोड़े बेच कर न सोता,
एक और चाहत कि मात्र चुनाव जीतने से पेंशन न पकती,
तो किसी भी नेता जी की कभी, कार्यक्षमता न रुकती।
काश ! ऐसा होता कि हमारे भी असल के नाव होते,
न कि बस काग़ज़ी, ये हमारे ख़याली पुलाव होते।
न हम अपना मत किसी धर्म - जाति के लगाव खोते,
राजनैतिक अखाड़े में अपने भी कमाल के दाव होते।
काश..... कितना अच्छा होता......
11 फ़रवरी 17. ~~~ अजय।
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