शातिर था वो...
देखने में तो सीधा, पर शातिर था वो,
अपने फ़न का खूबी से ...माहिर था वो,
जो भी था पर था वो ... कमाल का गुनी
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।
आपके और मेरे.... सरोकार की थी,
पर जो थी वो बात... "बड़े सरकार" की थी,
महंगाई बढ़ती गयी... दिन रात चौगुनी
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।
कहने लगा, जन्नत तुम्हें घुमा दूँगा मैं,
आसमानों से तारे तोड़, ला दूँगा मैं,
बस शर्त थी इतनी ..."अगर इस बार भी चुनी "
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।
हम-आप को तो वो खुद ही भुला गया,
मैं, मैं, मैं की.... बस घुट्टी पिला गया,
आधुनिक था "संत" , वो रमा गया धुनी
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।
हमने उसे "शायर" कहा...महफिल जमा बैठा,
जलसे में आया, मंच पर वह ऐंठ कर बैठा,
पढ़ने लगा मेरी ही गजल... वह चुनी-चुनी
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।
24 मार्च 13 ~~~अजय ।
देखने में तो सीधा, पर शातिर था वो,
अपने फ़न का खूबी से ...माहिर था वो,
जो भी था पर था वो ... कमाल का गुनी
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।
आपके और मेरे.... सरोकार की थी,
पर जो थी वो बात... "बड़े सरकार" की थी,
महंगाई बढ़ती गयी... दिन रात चौगुनी
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।
कहने लगा, जन्नत तुम्हें घुमा दूँगा मैं,
आसमानों से तारे तोड़, ला दूँगा मैं,
बस शर्त थी इतनी ..."अगर इस बार भी चुनी "
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।
हम-आप को तो वो खुद ही भुला गया,
मैं, मैं, मैं की.... बस घुट्टी पिला गया,
आधुनिक था "संत" , वो रमा गया धुनी
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।
हमने उसे "शायर" कहा...महफिल जमा बैठा,
जलसे में आया, मंच पर वह ऐंठ कर बैठा,
पढ़ने लगा मेरी ही गजल... वह चुनी-चुनी
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।
24 मार्च 13 ~~~अजय ।
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