मनाएं आज हम होली ...
उठा यह रंग हमजोली
निकल आ "बंद कमरे" से,
मनाएं आज हम होली।
न कोई मन में रंजिश हो
न कोई भेद हो तन में
मादक भ्रमर की गुंजन हो
बस उन्मुक्त उपवन में।
समंदर से उठा कर जल
भरें हम आज पिचकारी
रंगें कश्मीर की रग -रग
खिले हर फूल की क्यारी।
घुला कर चाय पूरब की
सजा दें पश्चिमी प्याली
इलाहाबाद की गुझिया से
भर दें हिन्द की थाली।
बड़ी उम्मीद से मैने
सजाई है ये रंगोली
निकल के आ तू कमरे से
बनाएं आज फिर टोली।
न कोई धर्म का लफड़ा
न कोई दंभ की बोली
न कोई खून का कतरा
हो बस रंगों की ये होली
जरा सी पहल हो तोरी
जरा सी चुहल हो मोरी
मरयादा... रहे कायम
न बिलखे "गाँव" की छोरी
न टीका मांग का उतरे
न टूटे हाथ की चूड़ी
न हो नम आँख बापू की
न रोये माँ कोई बूढ़ी
खिला कर भँग की गोली
बजा दे ढोल अब ढोली
डूबा कर रंग में सबको
मनाएं आज हम होली
22 मार्च 13 ...अजय
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