मुआ "ट्रांसलिटरेशन" ......
खुश तो बहुत हुआ हाथ में प्रिंट जब मिला,
गद्गद मैं, बेगम को पढ़ कर लुभाने चला गया।
बस लगे चार टांके और एक हुआ ऑपरेशन,
खता तो नहीं थी, ....पर ये हादसा हुआ,
मैं सुनाता हूँ लो, तुम्हें अब ये वाक़या।
मैं सुनाता हूँ लो, तुम्हें अब ये वाक़या।
वो फैलने लगे थे, ...किसी खुशबू की तरह,
कि वही मुस्करा उठा, जो करीब से गया ।
बेगम थीं वो बे-फिक्र, और ये दिल का मामला,
हम कर भी क्या पाते, हमारे बस में था भी क्या।
इक जुस्तजू हुई थी....... कि कुछ तारीफ़ में लिखूं
जो दिल को निचोड़ा तब, निकला यही मिसरा:-
जरा हौले से गुजरो जी , बड़ी हलचल सी है होती
जैसे बे-नकाब होने को हो ...बेताब कोई 'मोती '
तकनीक को दूं दोष या फिर खुद को, ऐ खुदा ..
अँगरेजी में लिख कर मैं, था हिन्दी छापने चला।
गद्गद मैं, बेगम को पढ़ कर लुभाने चला गया।
कहर तो उस समय बरसा, जब जुबाँ फिसल गई,
मोती के जगह प्रिंट में था, ...."मोटी" छप गया।
हम आज भी कोसते हैं उसे, "मुआ-ट्रान्सलिटरेशन"।
11 मार्च 13 ...अजय।
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