Saturday 27 July 2013

नाक का पानी

नाक का पानी...

एक मित्र ने एक चुनौती-पूर्ण सुझाव दिया 
और हमने भी अपनी मूंछों पर ताव दिया 

तो मूंछ जरा  खिसिया कर बोली 
बात बात में मुझे क्यों ऐंठते हो ?
फालतू में ही पंगे लेते रहते हो,
मिसिर जैसे छुर्री छोड़, चुप क्यों नहीं बैठते हो 

हमने कहा- सुनो तो महारानी 
जरा बंद करो अपनी ये रोनी- गानी
मामला असल में तुम्हारे पड़ोस का था
क्योंकि चुनौती का विषय था " नाक का पानी "

अब सोचो तुम्हारे मुहल्ले की बात थी
मैं चुप कैसे बैठता...? "नाक" पर आघात थी
अब तो कुछ लिख कर ही दिखाऊँगा
जरा सहयोग करो, तो नाक का "पानी" चढ़ाऊंगा

अब हमें लगा, यार ये तो मामला फंस गया
आख बंद कर, कलम उठा, खयाली सोफ़े मे धंस गया
सबसे पहले खयाल में माई सरस्वती आई 
हमने नाक दबा कर एक गहरी डुबकी लगाई

पानी के भीतर से ही उठा एक बुलबुला 
दर-असल बंद नाक से निकला था कोई जुमला
मैंने उसे लपेटने का प्रयास किया .....
तो पाया..." या कुंदेन्दु तुषार हार  धवला......"

आगे अपना लक्ष था... नाक का पानी
तो लो सुनाता हूँ आगे की कहानी ...
आगे मामला जरा सा संगीन है
क्योंकि नाक और पानी का रिश्ता ही नमकीन है

कोई नाक कटने से भयभीत होता है 
कोई पानी उतरने से गमगीन होता है 
'नाक' और 'पानी' दोनों ही "इज्ज़त" पर घात सहते हैं
और एक को भी कष्ट हो तो दोनों साथ साथ बहते हैं ।

26 जुलाई 13                                       ...अजय। 

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