(चित्र-लेखन - विधाता छंद)
प्रेयसी
रही हूँ कर झुकी पलकों, तले से आज अभिवादन।
उठा कर माँग का टीका, भरो सिंदूर ऐ साजन।।
रखूँगी मान आजीवन, हृदय से कर लिया वादा।
निभाऊँगी धर्म अपना, निछावर कर तुझे तन मन।।
जहाँ भी ले चलोगे तुम, वहाँ मैं साथ आऊँगी।
जहाँ तुम राग छेड़ोगे, वहाँ मैं गीत गाऊँगी।।
लबों की बाँसुरी हूँ मैं, सदा सुर से सजाना तुम।
हमें जो मोह में बाँधे, वही बस धुन बजाना तुम।।
12/02/23 ~अजय 'अजेय'।
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