ऐ वक़्त...
हो ले जितना भी कठिन,
ऐ वक़्त, मैं हारा नहीं हूँ,
साँस अब भी चल रही है,
मौत को, प्यारा नहीं हूँ।
मत समझ मुझको मृतक-सम,
ईंट या गारा नहीं हूँ,
सूर्य से डर कर छिपूं क्यों,
ताप हूँ, तारा नहीं हूँ।
साथ गर दोगे मेरा तुम,
राह कुछ आसान होगी,
जल हूँ मैं मीठा, नदी का,
जलधि सा, खारा नहीं हूँ।
सांझ हो रही तो भय क्या ?
हूँ दीप, अँधियारा नहीं हूँ,
साथ देना हो तो दो.......,
मोहताज, तुम्हारा नहीं हूँ।
गढ़ूँगा मैं राह अपनी,
मैं स्थिर धारा नहीं हूँ,
पद मेरे जमीन पर हैं,
मद से मैं, ज्वारा नहीं हूँ।
लिखूंगा तकदीर अपनी,
"कर-कलम" के जोर से,
शक्ति से परिपूर्ण हूँ,
तकदीर का, मारा नहीं हूँ।
20 नवंबर 2018 ~~~अजय।
हो ले जितना भी कठिन,
ऐ वक़्त, मैं हारा नहीं हूँ,
साँस अब भी चल रही है,
मौत को, प्यारा नहीं हूँ।
मत समझ मुझको मृतक-सम,
ईंट या गारा नहीं हूँ,
सूर्य से डर कर छिपूं क्यों,
ताप हूँ, तारा नहीं हूँ।
साथ गर दोगे मेरा तुम,
राह कुछ आसान होगी,
जल हूँ मैं मीठा, नदी का,
जलधि सा, खारा नहीं हूँ।
सांझ हो रही तो भय क्या ?
हूँ दीप, अँधियारा नहीं हूँ,
साथ देना हो तो दो.......,
मोहताज, तुम्हारा नहीं हूँ।
गढ़ूँगा मैं राह अपनी,
मैं स्थिर धारा नहीं हूँ,
पद मेरे जमीन पर हैं,
मद से मैं, ज्वारा नहीं हूँ।
लिखूंगा तकदीर अपनी,
"कर-कलम" के जोर से,
शक्ति से परिपूर्ण हूँ,
तकदीर का, मारा नहीं हूँ।
20 नवंबर 2018 ~~~अजय।