दो नैन...
दिल में चुभते हुये ये ख़ंजर हैं,
दो नयन ग़ज़ब के सुंदर हैं।
ठहरते हैं मुसाफ़िर, पुरसुकून पाने को,
ये साहिल नहीं, गाह-ए-बंदर हैं।
डूब जाने को जिनमें, हम आकुल,
चश्म नहीं फ़क़त, ये समंदर हैं।
न देखें तो बढ़ जाती है, बेचैनी दिल की,
देख लूँ तो, तूफ़ान-ओ-बवंडर हैं।
अब तो रखता हूँ बंद, मैं ये आँखें मेरी,
समेटे जिनमें, बला के मंज़र हैं।
05 मई 18. ~~~अजय।
दिल में चुभते हुये ये ख़ंजर हैं,
दो नयन ग़ज़ब के सुंदर हैं।
ठहरते हैं मुसाफ़िर, पुरसुकून पाने को,
ये साहिल नहीं, गाह-ए-बंदर हैं।
डूब जाने को जिनमें, हम आकुल,
चश्म नहीं फ़क़त, ये समंदर हैं।
न देखें तो बढ़ जाती है, बेचैनी दिल की,
देख लूँ तो, तूफ़ान-ओ-बवंडर हैं।
अब तो रखता हूँ बंद, मैं ये आँखें मेरी,
समेटे जिनमें, बला के मंज़र हैं।
05 मई 18. ~~~अजय।
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