कहाँ कहाँ देखा...
क्या बताऊँ, कहाँ कहाँ देखा,
जहाँ गया, उसे वहाँ देखा।
गली, कूचा, शहर का हर कोना,
उसकी चाहत में, मैंने जहाँ देखा।
किताबें छान कर, सारे जहाँ की,
सफ़े सफ़े पे उसका निशाँ देखा।
हर भीड़, हर मजमा, हर मजलिस में शिरकत,
गुज़रते पास से मैंने, हर कारवाँ देखा।
मैं तलाशता फिरा जिस शख़्स को अब तक,
उसकी आँखों में मैंने क्या देखा।
यूँ ही नहीं ये दीवाना, हुआ है दिल,
जुबाँ जुबाँ पर उसका बयाँ देखा।
30 अप्रैल 18. ~~~ अजय।
क्या बताऊँ, कहाँ कहाँ देखा,
जहाँ गया, उसे वहाँ देखा।
गली, कूचा, शहर का हर कोना,
उसकी चाहत में, मैंने जहाँ देखा।
किताबें छान कर, सारे जहाँ की,
सफ़े सफ़े पे उसका निशाँ देखा।
हर भीड़, हर मजमा, हर मजलिस में शिरकत,
गुज़रते पास से मैंने, हर कारवाँ देखा।
मैं तलाशता फिरा जिस शख़्स को अब तक,
उसकी आँखों में मैंने क्या देखा।
यूँ ही नहीं ये दीवाना, हुआ है दिल,
जुबाँ जुबाँ पर उसका बयाँ देखा।
30 अप्रैल 18. ~~~ अजय।
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