जलो ऐसे कि...
पियो इस तरह, कि तिश्नगी निकले,
जलो ऐसे कि, रोशनी निकले।
रोज हँसते रहे हो, मेरी नाकामियों पे,
आज दिल से वो, दिल्लगी निकले।
यूं हिकारत से, न देखा कीजै,
कभी तो नज़र से वो, पारगीं निकले।
हम भी तोहफे हैं, इसी कुदरत के,
हमारे वास्ते भी, बंदगी निकले।
हमें न तिल-तिल कर, जलाए कोई,
जाँ निकले तो एक बारगी निकले॥
10 नवंबर 15 ~~~अजय।
(तिश्नगी=प्यास, हिकारत= हेय दृष्टि/नफ़रत,
पारगीं=पूरानापन, बंदगी=प्रार्थना/पूजा )
पियो इस तरह, कि तिश्नगी निकले,
जलो ऐसे कि, रोशनी निकले।
रोज हँसते रहे हो, मेरी नाकामियों पे,
आज दिल से वो, दिल्लगी निकले।
यूं हिकारत से, न देखा कीजै,
कभी तो नज़र से वो, पारगीं निकले।
हम भी तोहफे हैं, इसी कुदरत के,
हमारे वास्ते भी, बंदगी निकले।
हमें न तिल-तिल कर, जलाए कोई,
जाँ निकले तो एक बारगी निकले॥
10 नवंबर 15 ~~~अजय।
(तिश्नगी=प्यास, हिकारत= हेय दृष्टि/नफ़रत,
पारगीं=पूरानापन, बंदगी=प्रार्थना/पूजा )
No comments:
Post a Comment