ॐ कुर्सीयाय नम: ...
(1) कुर्सी के सम्मान में, पेश करूँ मैं छंद।
माते को शत-शत नमन, करके आँखें बंद॥
(2) कुर्सी कुर्सी जग रटे, देवी यही विशिष्ट।
जिनकी सेवा में जुटे, आम कनिष्ठ वरिष्ठ॥
(3) कुर्सी को हरि जानिए, नित्य कीजिये ध्यान।
देवी को न बिसारिए, सञ्झा और विहान॥
(4) चार पाँव दुइ हस्त हैं, पीछे पृष्ठ-उठान ।
सज्जित आसन गुदगुदा, बैठे ताहि महान॥
(5) गृह की शोभा में सजीं, देवी 'सोफा' नाम।
भांति-भांति सूरत सजे, भांति-भांति के दाम॥
(6) जन-जन को आराम दें, हैं दफ़्तर की शान।
रूप रंग से दे रहीं, धारक को पहचान ॥
(7) देवी सुमिरन सम करें, निरबल और सशक्त।
जिनके घर ये जा बसें, तिनके पलटें वक़्त॥
(8) नत मस्तक जन-जन हुआ, इनके आगे आज।
चाहें तो ये बिगाड़ि दें, चाहें कर दें काज॥
(9) जिन पर क्रोधित हो गईं, तिनके फूटे भाग।
सागर को गागर करें, जल को कर दें आग ॥
(10) देवी-अर्जन दौड़ में, टूटीं सारी नीति।
कुर्सी पाने के लिए, भांति-भांति की प्रीति॥
(11) देवी को रखि हृदय में, झट धरि लीजे पाँव।
जो चाहें पल में करें, जानत सारे दाँव॥
(12) जिनके दिन कछु कठिन हों, करें मातु सम्मान।
कर भरि धारक दान दें, पांवें तुरत निदान॥
(एक साथ जोर से बोलिए कुर्सी माता की...... जय)
10 मई 2015 .......अजय।
(1) कुर्सी के सम्मान में, पेश करूँ मैं छंद।
माते को शत-शत नमन, करके आँखें बंद॥
(2) कुर्सी कुर्सी जग रटे, देवी यही विशिष्ट।
जिनकी सेवा में जुटे, आम कनिष्ठ वरिष्ठ॥
(3) कुर्सी को हरि जानिए, नित्य कीजिये ध्यान।
देवी को न बिसारिए, सञ्झा और विहान॥
(4) चार पाँव दुइ हस्त हैं, पीछे पृष्ठ-उठान ।
सज्जित आसन गुदगुदा, बैठे ताहि महान॥
(5) गृह की शोभा में सजीं, देवी 'सोफा' नाम।
भांति-भांति सूरत सजे, भांति-भांति के दाम॥
(6) जन-जन को आराम दें, हैं दफ़्तर की शान।
रूप रंग से दे रहीं, धारक को पहचान ॥
(7) देवी सुमिरन सम करें, निरबल और सशक्त।
जिनके घर ये जा बसें, तिनके पलटें वक़्त॥
(8) नत मस्तक जन-जन हुआ, इनके आगे आज।
चाहें तो ये बिगाड़ि दें, चाहें कर दें काज॥
(9) जिन पर क्रोधित हो गईं, तिनके फूटे भाग।
सागर को गागर करें, जल को कर दें आग ॥
(10) देवी-अर्जन दौड़ में, टूटीं सारी नीति।
कुर्सी पाने के लिए, भांति-भांति की प्रीति॥
(11) देवी को रखि हृदय में, झट धरि लीजे पाँव।
जो चाहें पल में करें, जानत सारे दाँव॥
(12) जिनके दिन कछु कठिन हों, करें मातु सम्मान।
कर भरि धारक दान दें, पांवें तुरत निदान॥
(एक साथ जोर से बोलिए कुर्सी माता की...... जय)
10 मई 2015 .......अजय।
No comments:
Post a Comment