खतरे में...
न राम खतरे में, ... न इस्लाम खतरे में,
कोई है जो खतरे में तो है ईमान खतरे में,
न बोधि खतरे में, न गुरु-ज्ञान खतरे में,
खतरे में अगर है तो है इंसान खतरे में।
है प्रेम का संदेश, सभी पोथी-पतरे में,
है रंग एक सा, लहू के कतरे कतरे में,
नहीं आंच है गीता पे, न कुर-आन खतरे में,
खतरे में अगर है तो है इंसान खतरे में।
भड़का रहे हमें-तुम्हें, बेईमान खतरे में,
लगती है जिन्हें अपनी अब दुकान खतरे में,
न हिन्द खतरे में, न मुसलमान खतरे में,
खतरे में अगर है तो है इंसान खतरे में।
करो कुछ यों, न रहे देश किसी खौफ़-खतरे में,
बेटियाँ पलें अपने नूरानी नाजो-नखरे में,
रख के दिल पे हाथ बोले, यह ज़ुबान जिक्रे में,
खतरे में अगर है तो है इंसान खतरे में।
05 सितंबर 2014 ...अजय
न राम खतरे में, ... न इस्लाम खतरे में,
कोई है जो खतरे में तो है ईमान खतरे में,
न बोधि खतरे में, न गुरु-ज्ञान खतरे में,
खतरे में अगर है तो है इंसान खतरे में।
है प्रेम का संदेश, सभी पोथी-पतरे में,
है रंग एक सा, लहू के कतरे कतरे में,
नहीं आंच है गीता पे, न कुर-आन खतरे में,
खतरे में अगर है तो है इंसान खतरे में।
भड़का रहे हमें-तुम्हें, बेईमान खतरे में,
लगती है जिन्हें अपनी अब दुकान खतरे में,
न हिन्द खतरे में, न मुसलमान खतरे में,
खतरे में अगर है तो है इंसान खतरे में।
करो कुछ यों, न रहे देश किसी खौफ़-खतरे में,
बेटियाँ पलें अपने नूरानी नाजो-नखरे में,
रख के दिल पे हाथ बोले, यह ज़ुबान जिक्रे में,
खतरे में अगर है तो है इंसान खतरे में।
05 सितंबर 2014 ...अजय