"पटाखे" ऊँची गलियों के ....
फिर वो ऊँची गली के पटाखों का क्या ?
ना तो वो ही गए ...ना ही ये जाएँगे,
तो फिर, इतनी मोटी, सलाखों का क्या ?
आती-जाती रहे अगर ताज़ी हवा,
तो अंधेरी गुफा मे सूराखों का क्या ?
उनकी बातों मे खनखन तो रंजिश की है,
प्यार आँखों मे हो, तो भी आँखों का क्या ?
चैन लाखों घरों का मिटा के गए ,
लाख दे के भी जाएँ, तो लाखों का क्या ?
01 अप्रैल 13 ... अजय
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