Saturday, 19 January 2013

नापाक इरादों वाले

"नापाक" इरादों वाले ....

मेरे सब्र की दीवार पर पत्थर न फेंक 
तू,

जो ढह गयी तो ढायेगी तुझ पर बड़ा

कहर।

शाम की अलाव की चिनगारी नहीं मैं,

हूँ जलजला, गुम करूँगा कस्बे, कई

शहर।

तू भूल गया बीती बातें... वो रोटियां,


एक थाल से खाते थे जो हम साथ बैठ

कर।

खेला किया है तू मेरे जज्बात से अब

तक, 

अब चेत ले वरना न देखेगा तू कल सहर।


विषधर है तू, मैं जानता हूँ जन्म से

तुझको,

अब बाज आ, तू तज दे, प्रतिदिन छोड़ना

जहर .

तू नाग भी हो तो मुझे परवाह कुछ नहीं,

हमारे कृष्ण हैं जिसने नचाया 
कालिया

नथ कर।

फिरा हूँ आज तक तुझको लिए गर्दन में मैं

अपने,

भुला बैठा है तू "तांडव", भुला बैठा

....कि मैं "शंकर"।

                                   ~अजय 'अजेय'।

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