ना-समझ...
दर्द को तो सभी ने सहा है मगर ,
"दर्द" से कोई परिचय कराता नहीं
प्रेम में सबने आहें भरीं हैं मगर,
"प्रेम" क्या है, ये कोई बताता नहीं
हंसते देखा है सबको हजारों दफा ,
पर "ख़ुशी" क्या है ,कोई सुझाता नहीं
हसरतें हैं उजालों की सबको यहाँ,
"रोशनी" कोई मुझको दिखाता नहीं
पोथियाँ लिख गए हैं करोड़ों गुरु,
"सत्य" क्या क्या है, समझ फिर भी आता नहीं
नासमझों की बस्ती में हूँ आ गया,
"ना-समझ" कोई कहता, तो भाता नहीं
एक ही बात खुद से हूँ समझा यहाँ,
कोई दूजा किसी का, विधाता नहीं
मेरे "अज्ञान" का दोषी खुद ही तो हूँ,
जो कदम अपना खुद मैं बढाता नहीं.
...अजय
very nice Ajay Ji !
ReplyDeleteशुक्रिया ...... आपने अपना परिचय दिया होता तो और अच्छा होता
Deleteहार्दिक धन्यवाद
ReplyDeleteएक ही बात समझा हूं यहां
ReplyDeleteकोई किसी का विधाता नहीं है
खूबसुरत पंक्तियां.....
बहुत खूब , अच्छी रचना ...
ReplyDeleteशुभकामनायें !
Wastvikta ka bodh karati ek sundar rachna.
ReplyDeleteदीपों के पर्व की बधाई //
ReplyDeleteकबीर ने प्रेम के बारे में कुछ कहा है ..क्या ख्याल है आपका
wahwaahwahawhawhawha
ReplyDeleteशुक्रिया ...... आपने अपना परिचय दिया होता तो और अच्छा होता
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