Tuesday 23 June 2015

बहुरूपिया...

बहुरूपिया...

बदला हमारे दिल से, बा-कायदा लिया,
दुश्मन  था, ... दोस्त बन के उसने फ़ायदा लिया।

तरक़ीब लाजवाब थी, जो उसने चल दिया, ...

कुछ रोज पहले आके उसने जायजा लिया,
धीरे से मेरी रूह में जगह बना लिया,
और फिर मेरे जज़्बात का यूं फ़ायदा लिया।

जब बहने लगे रौ में उसकी,  हम नदी समान,

सपने दिखा के उसने हमसे वायदा लिया,
जब डुबकियाँ लेने लगा ये, मोहब्बत मे दिल,
तब ... मेरी चाहत का, उसने फ़ायदा  लिया । 

बहुरूपिया वो था, जिसे समझ सके ना हम,

उसने हमारे प्यार को अलाहिदा लिया,
जब नाव डोलने लगी नदिया की मौज में,
उसने झटक के दामन हमसे छुड़ा लिया।

बदला  हमारे दिल से, बा-कायदा लिया,
दुश्मन  था, ... दोस्त बन के उसने फ़ायदा लिया।

12 जून 2015                             ...अजय। 


संवेदनहीन...

संवेदनहीन... 

क्यूँ उठाऊंगा मैं, जिम्मेवारियाँ,
क्यूँ थामूंगा हाथ में पतवार मैं,
आशा भरी निगाहें बेधती रहें,
डोलती इक नाव पर सवार मैं। 

सींचा गया हूँ बेल की मानिंद मैं,
इस लिए हूँ लीन गहरी नींद में,
हादसों के हाथ झकझोरें भी तो,
क्यूँ उठाऊँ अपने कांधे भार मैं।

जाने किस आचार के आगोश हूँ,
होश में होते हुये ..... बे-होश हूँ,
दिख रहीं भविष्य की रुसवाइयाँ भी,
फिर भी हूँ अंजाना, बना लाचार मैं।

मत दिखाओ कोई मुझको रास्ते,
मैं हूँ केवल, सिर्फ अपने वास्ते,
जानता हूँ मैं, विषम से बच निकलना,
हूँ मजा हुआ वो कलाकार मैं। 

दर्द है..... तो तुम उठा लो वेदना,
मुझमें न थी, ..... न है, कोइ संवेदना,
मत रखो मुझसे कोई उम्मीद तुम,
हूँ बवंडर, ना कि शीतल बयार मैं। 

11 जून 2015              ...अजय। 

छलियों से सावधान ...

छलियों से सावधान...

छलने वालों से रहना सतर्क साथिया,
उनको आते हैं लाखों सु-तर्क साथिया। 

पास आएंगे, तुमको लुभाएँगे  वो,
रस मे डूबी कहानी सुनाएँगे वो,
उनकी बातों मे जाना, उलझ ना प्रिये,
वो जला लेते हैं, आँसुओं से दिये,
मिर्च बेचते हैं वे, लगा के बर्क साथिया ...
उनको आते हैं लाखों सु-तर्क साथिया। 

उनकी काया के रंग गोरे-गोरे से हैं,
उनके मुखड़े के भाव, बड़े भोले से हैं,
उनकी बातों से मधु सा टपकता दिखे,
पल मे रच देते हैं, मीठे सपने सखे,
"भू-मध्य" को बनाते हैं, "कर्क" साथिया ...
उनको आते हैं लाखों सु-तर्क साथिया। 

10 जून 2015                           ... अजय। 

Saturday 6 June 2015

वक़्त के फैसले

वक़्त के फैसले...

वक़्त के भी गज़ब के फैसले हैं,
दर्द के हौसले अब बढ़ चले हैं,
सुकूँ तलाशने को अब किधर जाएँ,
कदम-दर-कदम पर तो ज़लज़ले हैं। 

05जून 2015              ....अजय।