Tuesday 2 April 2013

पटाखे ऊंची गलियों के


"पटाखे" ऊँची गलियों के ....

बस हम-तुम लगातार फटते रहें ...?
फिर वो ऊँची गली के पटाखों का क्या ?

ना तो वो ही गए ...ना ही ये जाएँगे,
तो फिर, इतनी मोटी, सलाखों  का क्या ?

आती-जाती रहे अगर ताज़ी हवा,
तो  अंधेरी गुफा मे सूराखों का क्या ?

उनकी बातों मे खनखन तो रंजिश की है,
प्यार आँखों मे हो, तो भी आँखों का क्या ?

चैन लाखों घरों का मिटा के गए ,
लाख दे के भी जाएँ, तो लाखों का क्या ?

01 अप्रैल 13                    ... अजय 

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