Friday, 28 February 2025

काठ की हाँडी (दिल्ली चुनाव)

 *काठ की हाँडी*

(पीयूष निर्झर छंद)


सो गया सपना बिचारे केजरी का।

चढ़ गया ताला हरीसन टेजरी का।

कब तलक ये काठ की हाँड़ी चलाते।

कब तलक ये झूठ की दालें गलाते।।


हैं नहीं पकतीं खिचड़ियाँ बाँस लटकी।

टाँग कर के बीरबल सी दाल मटकी।

खोखले वादे कहाँ तक काम आते।

तीर कब तक गैर के काँधे चलाते।।


10/2/25           ~अजय 'अजेय।

Saturday, 15 February 2025

खेल-तमाशा

 

चित्र लेखन

*खेल-तमाशा*

(महाश्रृंगार छंद)


हिम्मती बाला करती खेल,

सामने इसके लड़के फेल,

समन्वय का है अद्भुत मेल,

संतुलन की यह रस्सी रेल।।


व्यक्ति खास हो या हो आम,

मेहनत से ही बनता काम,

बिन मेहनत के मिले न धाम,

मेहनत से जीवन आराम।।


खोले हाथ जो माँगें भीख,

बाला उन्हें सिखाती सीख,

मेहनत की ही राह सटीक,

मेहनत की तुम धारो लीक।।

13/2/25        ~अजय 'अजेय'।