Tuesday, 16 November 2021

रैलियाँ व महामारी

गीतिका छंद
रैलियाँ और महामारी

रोक देनी थीं मगर ये, रोकते नहिं रैलियाँ। 
जुट रहे हैं लोग लाखों, बढ़ रही नित टैलियाँ।।
संविधानिक विवशता की आड़ में सब मौन हैं।
ताक पर रख दी गयी हैं ज्ञान की सब थैलियाँ।।

है कहाँ परवाह किसको, इस सियासी खेल में।
कौन बीमारी लिये है, आज धक्कम-पेल में।।
चुटकियों में बदल सकती, हैं जहाँ धारा कई।
हो रहे हैं खेल घाती वहाँ रेलम-रेल में।।

मौन हैं कानूनविद सब, मौन हैं सब कचहरी।
बाज सी हैं नजर पद पर, बने हैं सब गिलहरी।।
हैं कबूतर से बने बैठे सियासी भेड़िये।
नैन में पाले हुए हैं, ख़ाब सारे सुनहरी।।

29/4/21              ~अजय 'अजेय'।

Thursday, 11 November 2021

छठ पूजा पर

(दुर्मिल सवैया छंद)
(1) छठ पूजा पर

पत्नी पति से कहतीं सजना, कब आवत हो छठ आय गयी।
तुम आ न सके पछिले हफ्ते, मन दीपक जोत जराय गयी।
छठ पूजन में नहिं छूट तुहें, दउरा फल, सूप मँगाय लयी।
फटही सरिया नहिं घाट चलूँ, नवकी सरिया ह किनाय लयी।।
10/11/21                             ~अजय 'अजेय'।

(2) बिरह निवेदन 

पत्नी पति से कहती सुनिये, अब आप घरे कब आय रहे।
जस भूलि गए अपने जन को, हमको अस खूब सताय रहे।
जब आय रहे पिछले बरिसौं, मनको तुम खूब लुभाय रहे।
कुछ भूल भई हमसे जदि तो, अब  माफ करो सिर नाय रहे।।

मन आकुल है अब लौटि परो, हम कान धरै लखते रहिया।
करि याद रहे बचवा-बचिया, मन भाय न दूध न ही दहिया।
तुमसे हमरी मुस्कान सजे, तुमसे हरषाय हमार जिया।
तुम जीवन के इन्जन सम हो, हम हैं जिसके पन्चर पहिया।।
11/11/21                              ~अजय 'अजेय'।