इम्तिहान है बाक़ी...
मत हो अभी, यूँ मेहरबान साक़ी,
दर्द का कुछ, इम्तिहान है बाक़ी।
उनकी महफिलें, चली हैं रात सारी,
सुबह की तो मेरी, अजान है बाकी।
हर मोड़ पर तो, मैं ही दो क़दम चला,
फ़ासला फिर क्यों, दरमियान है बाकी।
तफ्सील से सुनीं, हमने बातें उनकी,
कोई तो सुनो,मेरे, सुर्खियान है बाकी।
जो भी होगा, है फ़ैसला हमें क़ुबूल यारों,
मगर अभी तो, अपना बयान है बाकी।
किसी को हो तो हो, ग़ुरूर महलों का,
मेरे छप्पर की अभी, कुछ तो शान है बाकी।
02 जून 18 ~~~अजय।
No comments:
Post a Comment