मेरी ग़ज़ल के दायरों में ...
मेरी ग़ज़ल के दायरों में, ही रहा कीजे,
आवाज़ बन, मेरे लबों पर, ही बहा कीजे।
भटक जाऊँ न मैं रस्ते, बियाबाँ इन अंधेरों में,
थाम कर ऊँगलियाँ मेरी, मेरे संग, ही रहा कीजे।
बड़ी बेचैन रहती हैं, मेरी साँसें, अकेले में,
आप हैं पास, अपनी खुशबूओं से, ही कहा कीजे।
बहुत मुश्किल है सह पाना, ये दर्दे-दिल जुदाई में,
नहीं छूटेगा अब ये साथ, ऐसे ही कहा कीजे।
07 जून 2018. ~~~ अजय।
मेरी ग़ज़ल के दायरों में, ही रहा कीजे,
आवाज़ बन, मेरे लबों पर, ही बहा कीजे।
भटक जाऊँ न मैं रस्ते, बियाबाँ इन अंधेरों में,
थाम कर ऊँगलियाँ मेरी, मेरे संग, ही रहा कीजे।
बड़ी बेचैन रहती हैं, मेरी साँसें, अकेले में,
आप हैं पास, अपनी खुशबूओं से, ही कहा कीजे।
बहुत मुश्किल है सह पाना, ये दर्दे-दिल जुदाई में,
नहीं छूटेगा अब ये साथ, ऐसे ही कहा कीजे।
07 जून 2018. ~~~ अजय।