चाँद की यादें...
चाँद गुजरा था, एक रोज, मेरी छत से कभी,
चाँदनी आज भी, तब से, यूं सताती है मुझे।
फूल जो सूख गए थे, रखे किताबों में,
उन से उन हाथों की, हल्की महक, आती है मुझे।
चिट्ठियाँ उसने, लिखी थीं, ...मौन चेहरे से,
पढ़ नहीं पाया, मगर वो अब, याद आती हैं मुझे।
राह कच्ची सी,.... जिस पर वो गुजरते थे कभी,
पय-दर-पय, फिर वही राह, बुलाती है मुझे।
दिल तो कहता है कि, एक रोज मिलेंगे वो फिर,
न जाने कौन सी शै है,... जो डराती है मुझे।
ये भी अच्छा ही हुआ,... कि वो मेरा न हुआ,
तभी तो उसकी, हर अदा, याद आती है मुझे।
17 नवंबर 13 ...अजय।
चाँद गुजरा था, एक रोज, मेरी छत से कभी,
चाँदनी आज भी, तब से, यूं सताती है मुझे।
फूल जो सूख गए थे, रखे किताबों में,
उन से उन हाथों की, हल्की महक, आती है मुझे।
चिट्ठियाँ उसने, लिखी थीं, ...मौन चेहरे से,
पढ़ नहीं पाया, मगर वो अब, याद आती हैं मुझे।
राह कच्ची सी,.... जिस पर वो गुजरते थे कभी,
पय-दर-पय, फिर वही राह, बुलाती है मुझे।
दिल तो कहता है कि, एक रोज मिलेंगे वो फिर,
न जाने कौन सी शै है,... जो डराती है मुझे।
ये भी अच्छा ही हुआ,... कि वो मेरा न हुआ,
तभी तो उसकी, हर अदा, याद आती है मुझे।
17 नवंबर 13 ...अजय।
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