संतोष
लोग चाहते रहे जिंदगी भर मगर
क्या मिला, उनको अब भी, नहीं है खबर
कह रहा हूँ मैं, अब भी सबर कीजिये
जायेंगे किस डगर, अब संभर लीजिये
जो मिल गया उसे ही सँवार लीजिये
जो खो गया उसे, गर्त में दीजिये
जो बीत गया उस दिन का, क्या रोना दोस्त
जो हाथ में है, उस में ही मौज लीजिये .
31 अक्तूबर 12 .....अजय
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