वो बेरुखी उनकी, बड़ा बवाल कर गयी
हँसते हँसाते दिल से इक सवाल कर गयी
खोये थे खुश-गँवार हम, लम्हे किये नज़र
अक्सर हमारे दिल पे जो, वो चाल, कर गयी
वो बेरुखी उनकी...
छूकर बदन उनका हवा, आती हमारे पास
और जाते जाते हमको माला-माल कर गयी
वो बेरुखी उनकी...
गम-सुम सा वो चेहरा, और झुकी झुकी नज़र
किसी और के होकर चले, कदम जो दर बदर,
वह फूल सी कटार, जिसकी धार भी न थी
वो इस गरीब को यूँ ही हलाल कर गयी
वो बेरुखी उनकी...
१५ फरवरी ०६ ...अजय
वह फूल सी कटार, जिसकी धार भी न थी
ReplyDeleteवो इस गरीब को यूँ ही हलाल कर गयी
khubsoorat panktiyaan hain...
Waah!!! :)
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