Friday 8 June 2018

ग़ज़ल के दायरों में ही

मेरी ग़ज़ल के दायरों में ...

मेरी ग़ज़ल के दायरों में, ही रहा कीजे,
आवाज़ बन, मेरे लबों पर, ही बहा कीजे।

भटक जाऊँ न मैं रस्ते, बियाबाँ इन अंधेरों में,
थाम कर ऊँगलियाँ मेरी, मेरे संग, ही रहा कीजे।

बड़ी बेचैन रहती हैं, मेरी साँसें, अकेले में,
आप हैं पास, अपनी खुशबूओं से, ही कहा कीजे।

बहुत मुश्किल है सह पाना, ये दर्दे-दिल जुदाई में,
नहीं छूटेगा अब ये साथ, ऐसे ही कहा कीजे।

07 जून 2018.                 ~~~ अजय।

Saturday 2 June 2018

इम्तिहान है बाक़ी


इम्तिहान है बाक़ी...

मत हो अभी, यूँ मेहरबान साक़ी,
दर्द का कुछ, इम्तिहान है बाक़ी।

उनकी महफिलें, चली हैं रात सारी,
सुबह की तो मेरी, अजान है बाकी।

हर मोड़ पर तो, मैं ही दो क़दम चला,
फ़ासला फिर क्यों, दरमियान है बाकी।

तफ्सील से सुनीं, हमने बातें उनकी,
कोई तो सुनो,मेरे, सुर्खियान है बाकी।

जो भी होगा, है फ़ैसला हमें क़ुबूल यारों,
मगर अभी तो, अपना बयान है बाकी।

किसी को हो तो हो, ग़ुरूर महलों का,
मेरे छप्पर की अभी, कुछ तो शान है बाकी।

02 जून 18                      ~~~अजय।