*_रूपमाला छंद_*
सौगात-ए-मरक़ज़
देश-हित को ताक पर रख, कर रहे हैं घात।
देश-हित की नीतियों पर, कर रहे आघात।।
बोलिए जी हम उतारें, आरती ले दीप ?
या कि उनकी फितरतों को, दें करारी मात।।
करी विनती और देखा, जोड़ कर के हाथ।
समझते थे हम कि देंगे, वे हमारा साथ।।
तोड़ कर विश्वास भागे, मजहबी हज़रात।
बाँटते वे फिर रहे हैं, मौत की सौगात।।
२१/४/२०। ~अजय 'अजेय'।