फ़र्ज निभाओ ...
खाया है नमक देश का, अब फ़र्ज निभाओ,
हाथ रख के अपने दिल पे, जरा ये भी बताओ।
आया था लुटेरा तब, क्या साथ लाया था,
लाव-ए-लश्कर में क्या था, जरा पढ़ के बताओ।
साथ थी किसी की अम्मा,कोई बेटी या बहू,
जो कुछ भी था, फ़ेहरिस्त में, वह बांच तो आओ।
क्रूर उन आतताइयों का, युद्ध जब थमा,
कितने गए थे लौट के, तुम गिन के बताओ।
वे टिक गए यहीं थे, व्यभिचार के बूते,
उनसे पहले यह इस्लाम कहाँ था, ये बताओ।
संतान हो उस माँ की जिसने जुल्म सब सहे,
वह 'उफ़्फ़' न कर सकी, जरा यह जान भी जाओ।
थीं बेटियाँ इस घर की, जो डरा दी गयीं,
उनके मौन की पीड़ा को, जरा ज़हन में लाओ।
सहती रहीं, कहतीं किसे, जो पीर थी उनकी,
अब समझ जाओ, फ़क़त अपना राग मत गाओ।
तुम हो हमारे भाई, यह हमको यकीन है,
तुम हिन्द की संतान हो, नीयत से दिखलाओ।
तुमसे हमारा भेद कोई था नहीं, ना है,
तुम भी तो अपने भेद, हम से आज मिटाओ।
क्यों लड़ रहे हो राम से, ज़मीन के लिए,
बाबर के वालिदैन की, वसीयत तो दिखाओ।
28 दिसंबर 2018 ~~~ अजय 'अजेय'।
खाया है नमक देश का, अब फ़र्ज निभाओ,
हाथ रख के अपने दिल पे, जरा ये भी बताओ।
आया था लुटेरा तब, क्या साथ लाया था,
लाव-ए-लश्कर में क्या था, जरा पढ़ के बताओ।
साथ थी किसी की अम्मा,कोई बेटी या बहू,
जो कुछ भी था, फ़ेहरिस्त में, वह बांच तो आओ।
क्रूर उन आतताइयों का, युद्ध जब थमा,
कितने गए थे लौट के, तुम गिन के बताओ।
वे टिक गए यहीं थे, व्यभिचार के बूते,
उनसे पहले यह इस्लाम कहाँ था, ये बताओ।
संतान हो उस माँ की जिसने जुल्म सब सहे,
वह 'उफ़्फ़' न कर सकी, जरा यह जान भी जाओ।
थीं बेटियाँ इस घर की, जो डरा दी गयीं,
उनके मौन की पीड़ा को, जरा ज़हन में लाओ।
सहती रहीं, कहतीं किसे, जो पीर थी उनकी,
अब समझ जाओ, फ़क़त अपना राग मत गाओ।
तुम हो हमारे भाई, यह हमको यकीन है,
तुम हिन्द की संतान हो, नीयत से दिखलाओ।
तुमसे हमारा भेद कोई था नहीं, ना है,
तुम भी तो अपने भेद, हम से आज मिटाओ।
क्यों लड़ रहे हो राम से, ज़मीन के लिए,
बाबर के वालिदैन की, वसीयत तो दिखाओ।
28 दिसंबर 2018 ~~~ अजय 'अजेय'।