Wednesday, 21 May 2014

पत्ता-पत्ता रस से भींजे...

पत्ता-पत्ता रस से भींजे...


पत्ता-पत्ता रस से भींजे, जब अमियाँ  बौराती हैं, 
दिल के तार खनकते हैं जब, वो बगिया में आती हैं। 

सबा नशीली होती है और, शब की नींदें जाती हैं,
तिनका-तिनका गज़ल पढे जब, वो मौसम बन आती हैं,
पत्ता पत्ता रस से भींजे...... 

महुए सी रस से बोझिल जब, वो आगोश मे आती हैं,
धक-धक करती दिल की धड़कन, भी संगीत सुनाती हैं,
पत्ता पत्ता रस से भींजे...... 

20 मई 2014                                          ...अजय। 

Thursday, 15 May 2014

बिहान हो गइल...

बिहान हो गइल...
(...एक भोजपूरी उम्मीद )


सूखल पोखरा में पानी के निदान हो गइल,
चल_अ, उठ_अ, छोड़ चादारा, बिहान हो गइल।

हाथे के लकीर लखत, दिनवाँ बितवल_अ,
केहू सुधि लेई कबो....सपना सजवल_अ,
देख_अ  पोखरा में कमल के उफान हो गइल, 
चल_अ, उठ_अ, छोड़ चादारा, बिहान हो गइल।

बाबा विस्वनाथ तोहार लालसा पुरवलें,
ख़ाक से उठा के तोहके माथ पर सजवलें,
पूरन कर सब सपनवा, दिल जवान हो गइल,
चल_अ, उठ_अ, छोड़ चादारा, बिहान हो गइल।

खुसुर-पुसुर बंद, अब जलवा देखा द,
हमलावरन के, सही रास्ता चेता द,
देश कर _अ शक्तिशाली, ई ऐलान हो गइल,
चल_अ, उठ_अ, छोड़ चादारा, बिहान हो गइल।

15 मई 2014                                      ...अजय।  

Monday, 12 May 2014

अज़ीज़ सी कशिश...

अज़ीज़ सी कशिश...


बसे वो ऐसे, मेरी रूहो-खयालातों में,
कि जिक्र रह-रह के, आ जाये, बातों बातों में।

हज़ार ताने सहे हमने, लाख फ़िकरे सुने,
डोर फिर भी, सौंप आए, उन्हीं हाथों में।

जिधर नज़र गयी, उधर ही वो, नज़र आए,
ऐसा चश्मा है, मुँदी आँखों में।

न जाने कौन सी, खुशबू से, लबरेज हैं वो,
एक अज़ीज़, सी कशिश है , मुलाकातों में। 

टूटे ख़ाबों ने, जग कर, इधर-उधर झाँका,
दिल में सोया था, किसे आता नज़र, वो रातों में। 

11 मई 2014                                                ...अजय।