वह चली गयी …
(सासू- माता के देहावसान पर)
उनमें से एक मिला मुझको, सजता है मेरे दरीचे में.
मालिन थी वह, मलकिन भी थी, माली का बाग़ रखाती थी,
बगिया के पुष्प सिंचे उससे, माली के ख्वाब सजाती थी.
परवाह न की उस माटी की,जो हाथों में लग जाती थी,
उसको भी वह श्रृंगार मान, अपनों के लिए सजाती थी.
सहती थी नखरे, नाज़ों-गम , सबको सप्रेम खिलाती थी,
खुद रहती थी बीमार मगर,सबके माथे सहलाती थी.
वह जो भी थी, जैसी भी थी,…अंजुमन की शम्मा थी,
जो चाहे उसको तुम कह लो, वह इन पुष्पों की अम्मा थी.
वह चली गयी इस बगिया से, सब पुष्प बुझे मुरझाये हैं,
काले बादल बरसातों के, …कुछ इन आखों में छाये हैं.
२३ जनवरी २०१४ …अजय.