Tuesday 5 July 2016

यादों के सहारे

यादों के सहारे...


आज पवन का झोंका आया,लिए बसंत बयार,
फेस-बुक पर देख उन्हें है फिर से उमड़ा प्यार।

वे हमको बिसरा बैठे हैं, कुछ सालों में यार,
हम कैसे भूलें यारों को ?... आदत से लाचार।

जब बैठें तनहाई में हम, डूबें गहन विचार,
आ जाती हैं मिलने हमसे, उनकी यादें चार।

खो जाता हूँ यादों के जंगल में, स्वयं बिसार,
वक़्त गुजर जाता है कठिन कुछ, है उनका आभार।

कह उठता हूँ यादों से, बिन बोले शब्द हजार,
जस आयीं तुम मेरे घर, जाओ उनके भी द्वार।

कहना उनसे मिलकर कि है, अब भी इंतेज़ार,
जो होता था तब, जब ना कर पाते थे दीदार।

05 जुलाई 2016                     ~~~अजय।