Tuesday 18 August 2015

राजा जी तुम राजा हो तो...

राजा जी तुम राजा हो तो...

राजा जी तुम राजा हो तो राजाओं सी बात करो,
"प्राण जाये पर वचन जाये" ऐसे तुम हालात करो।

नींद उड़ा अपनी आँखों की मैंने तुम्हें सुलाया था,

याद करो वह दिन जब तुमने मुझको गले लगाया था। 

जब भी तेरी आहों ने मुझको आवाज लगाया है,

मेरे घर का मौन सिपाही थाली तज कर आया है।

मैं तेरे उन्नत मस्तक का कभी गुरूर हुआ करता था,

तुझ पर सदा फ़ना होने का मुझे सुरूर हुआ करता था।

आज "मुनीमों" ने तेरे मेरी क्या हालत कर डाली है,

कुर्सी जो आगे सजती थी मीलों पीछे कर डाली है।

आज झूलती चमड़ी पर कुछ "प्यादों" ने लाठी मारी है,

आहत हुआ हृदय "पगड़ी" का जो हमको हर दम प्यारी है।

हमें सुला दें ऐसा उनकी लाठी में दम कभी नहीं है,

गिरती हुयी साख पर मेरी, नज़र तुम्हारी अभी नही है।

कहो बुला कर "प्यादों" से कि खामोशी कमजोर नहीं है,

जिस दिन खुले पाँव बेड़ी से उस दिन कोई ठौर नहीं है।

मेरा "मुखिया" चुप बैठा पर मेरा दिल गम-भरा हुआ है,

कैसा "जन्तर-मन्तर" है, जो लाल खून से हरा हुआ है?

15/18 अगस्त 15                                     ~~~ अजय। 

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