Thursday 15 May 2014

बिहान हो गइल...

बिहान हो गइल...
(...एक भोजपूरी उम्मीद )


सूखल पोखरा में पानी के निदान हो गइल,
चल_अ, उठ_अ, छोड़ चादारा, बिहान हो गइल।

हाथे के लकीर लखत, दिनवाँ बितवल_अ,
केहू सुधि लेई कबो....सपना सजवल_अ,
देख_अ  पोखरा में कमल के उफान हो गइल, 
चल_अ, उठ_अ, छोड़ चादारा, बिहान हो गइल।

बाबा विस्वनाथ तोहार लालसा पुरवलें,
ख़ाक से उठा के तोहके माथ पर सजवलें,
पूरन कर सब सपनवा, दिल जवान हो गइल,
चल_अ, उठ_अ, छोड़ चादारा, बिहान हो गइल।

खुसुर-पुसुर बंद, अब जलवा देखा द,
हमलावरन के, सही रास्ता चेता द,
देश कर _अ शक्तिशाली, ई ऐलान हो गइल,
चल_अ, उठ_अ, छोड़ चादारा, बिहान हो गइल।

15 मई 2014                                      ...अजय।  

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