Monday 3 December 2012

भ्रष्टाचार 


नहीं पहचाना मुझे ..................???
भई ... , सबका खास, सबका दुलारा 
सबकी जुबान पर, चढ़ा चटखारा
दिमाग पर इतना भार मत दीजै ...
चटपटा, स्वादिष्ट, खट -मिट्ठा या खारा, 
भुलाया न जा सके, वो अचार  हूँ मैं।

सुकून जो देता है,
मन भी मोह लेता है 
औरों को कष्ट दे, तो  मेरी बला से ...
कूटनीति भरा ऐसा एक विचार हूँ मैं
चटपटा, स्वादिष्ट, खट -मिट्ठा या खारा,
भुलाया न जा सके, वो अचार  हूँ मैं।


सुननेवाला सुने न सुने 
कहने वाला अपना ही सर धुने 
जो बिन माँगी सेवाएं खुद-ब-खुद चुने, 
सचल दूरभाष तंत्र का अनचाहा  संचार हूँ मैं 
चटपटा, स्वादिष्ट, खट -मिट्ठा या खारा, 
भुलाया न जा सके, वो अचार  हूँ मैं। 

सब जानते भी हैं मुझे, पहचानते भी हैं 
और वक़्त पड़ने पर मुझे स्वीकारते भी हैं
दूसरों की पत्तलों में अशोभनीय हूँ मगर 
अपनी थाली में तो  सत्कार हूँ मैं
चटपटा, स्वादिष्ट, खट -मिट्ठा या खारा, 
भुलाया न जा सके, वो अचार  हूँ मैं। 

कभी आदाब में हूँ , तो कभी सलाम में हूँ 
और कभी रौनक में डूबी हुई शाम में हूँ 
अवाम की नजर में शिष्टाचार सा लगे, 
सफेदपोशों का वो कुटिल नमस्कार हूँ मैं
चटपटा, स्वादिष्ट, खट -मिट्ठा या खारा, 
भुलाया न जा सके, वो अचार  हूँ मैं। 

उँगलियाँ न उठीं तब तक, वारे- न्यारे हैं , 
जब धर लिए गए तो किस्मत के मारे हैं , 
" इल्ज़ामात  बेबुनियाद " का है राग दरबारी 
सच्चाई तो ये है कि  व्यभिचार हूँ मैं
चटपटा, स्वादिष्ट, खट -मिट्ठा या खारा, 
भुलाया न जा सके, वो अचार  हूँ मैं।

हेय हूँ जुबान पे,..हर  दिल में बसा हूँ ,
छूटने न पाए जो, मैं ऐसा नशा हूँ ,
विश्वास न हो तो जरा दिल फाड़ कर देखो 
तुम्हारे रक्त में मिश्रित असल गद्दार हूँ मैं
भ्रष्टाचार,... भ्रष्टाचार,... भ्रष्टाचार हूँ मैं ...

चटपटा, स्वादिष्ट, खट -मिट्ठा या खारा, 
भुलाया न जा सके, वो अचार  हूँ मैं। 

03 दिसंबर 12                      .......अजय