Tuesday 5 October 2021

भटकन

(कामिनी/पद्मिनी छंद)
*भटकन*
लोग भटका गये तुम भटकने लगे,
राह में रोज रोड़े अटकने लगे।
जो पता ही न हो फासलों की वजह,
सामने बैठकर बात हो किस तरह।

हाल में तुम सभी रोटियाँ सेंक लो,
जो बने हैं नियम फाड़कर फेंक दो।
बात होगी तभी मान लोगे जभी,
जो न भाये वही राग तुम रेंक दो।

बात कैसे बने सोचते भी नहीं,
बीज कैसे उगे सींचते ही नहीं।
फौज के कारवाँ की कदर ना करो,
पीसफुल आन्दोलन दिखावा करो।
4/10/21 ~अजय 'अजेय'।

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