Sunday 6 May 2018

दो नैन

दो नैन...

दिल में चुभते हुये ये ख़ंजर हैं,
दो नयन ग़ज़ब के सुंदर हैं।

ठहरते हैं मुसाफ़िर, पुरसुकून पाने को,
ये साहिल नहीं, गाह-ए-बंदर हैं।

डूब जाने को जिनमें, हम आकुल,
चश्म नहीं फ़क़त, ये समंदर हैं।

न देखें तो बढ़ जाती है, बेचैनी दिल की,
देख लूँ  तो, तूफ़ान-ओ-बवंडर हैं।

अब तो रखता हूँ बंद, मैं ये आँखें मेरी,
समेटे जिनमें, बला के मंज़र हैं।

05 मई 18.            ~~~अजय।

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