Friday 23 February 2018

वह है यहीं कहीं

वह है यहीं कहीं...

वह है भी यहीं, और है भी नहीं,
वो चला भी गया, और गया भी नहीं,
हम जो मिलने पहुँचे थे वहाँ पर उस दिन,
वो बस लेटा रहा...... वो उठा भी नहीं।

ऐसा पत्थर दिल हो जायेगा मेरा दोस्त,
न था विश्वास, और मानना भी कठिन,
कि जो हँसता था हर बात पर अब तलक,
रोने-गाने तक पर,वह हँसा ही नहीं।

सब की बातों में था, सब की सुबकियों में था,
भीगी आँखों में छुपती, उन अश्कियों में था,
जो खुल के न निकलीं, उन सिसकियों में था,
वह फिर सुबह अख़बार वाली सुर्खियों में था।

मेरी यादों ने फिर है पुकारा उसे,
जो चला तो गया, और गया भी नही,
एक दिल है यहाँ, जो न करता यक़ीं,
कि वो है भी यहीं, और है भी नहीं। 
14/02/2018.            ~~~अजय।

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