Sunday 12 March 2017

एक दिल है...

एक दिल है...

होने लगा यक़ीन कि, एक दिल है उनके पास भी,

मेरी ग़ज़ल के सफ़ गुनगुनाने लगे हैं वो।

निकली हैं जो दिल से, सदाओं में असर है,

अब सुन के मेरा नाम , लजाने लगे हैं वो।

पहले था कोई और, उनके घर का रास्ता,

मेरी गली के रास्ते, जाने लगे हैं वो।

पहले गुँथे होते थे, चोटियों में परांदे,

चेहरे पे दो लटें, झुलाने लगे हैं वो।

नज़रें उठा के गुफ्तगूं, करते थे वो कभी,

देखते ही नज़र, हमको, झुकाने लगे हैं वो।

ये उम्र का असर है, या कि प्रेम का सुरूर,

छत पे आने के बहाने, खुद बनाने लगे हैं वो।

19 फ़रवरी 2017.                ~~~ अजय।



हम आये हैं मिलने

हम आये हैं मिलने...  

हम आये हैं मिलने...ये गुलदस्ते सम्हालिये, 
आपके जो हाथ में हों, वो रिश्ते सम्हालिये।

अपनों के बीच, तोल-मोल होता नहीं है,
साथ मिल के सब हँसें, तो कोई रोता नहीं है,
वक़्त एक सा चले, ये तो हो नहीं सकता,
भारी भी कभी मीत के बस्ते सम्हालिये...
आपके जो हाथ में हों, वो रिश्ते सम्हालिये।

बढ़ते हैं रोज भाव, नून, तेल, दाल के,
हम भूल रहे "हाट", अब चलन हैं मॉल के,
आसमान में उगती नहीं हैं, सब्ज़ियाँ, फ़सलें,
ठेले के माल भी सस्ते सम्हालिये...
आपके जो हाथ में हों, वो रिश्ते सम्हालिये।

हम ये नहीं कहते कि ऊँचे ख्वाब न लखें,
मन में जो आयें भाव, उनको शान से रखें,
अंबर की ख़्वाहिशें भी हों, और पाँव ज़मीं पर,
लड्डू के साथ गुड़ के भी खस्ते सम्हालिये...
आपके जो हाथ में हों, वो रिश्ते सम्हालिये।

हम आये हैं मिलने...गुलदस्ते सम्हालिये,
आपके जो हाथ में हों, वो रिश्ते सम्हालिये।

12 मार्च 2017                      ~~~अजय।