Sunday 12 March 2017

एक दिल है...

एक दिल है...

होने लगा यक़ीन कि, एक दिल है उनके पास भी,

मेरी ग़ज़ल के सफ़ गुनगुनाने लगे हैं वो।

निकली हैं जो दिल से, सदाओं में असर है,

अब सुन के मेरा नाम , लजाने लगे हैं वो।

पहले था कोई और, उनके घर का रास्ता,

मेरी गली के रास्ते, जाने लगे हैं वो।

पहले गुँथे होते थे, चोटियों में परांदे,

चेहरे पे दो लटें, झुलाने लगे हैं वो।

नज़रें उठा के गुफ्तगूं, करते थे वो कभी,

देखते ही नज़र, हमको, झुकाने लगे हैं वो।

ये उम्र का असर है, या कि प्रेम का सुरूर,

छत पे आने के बहाने, खुद बनाने लगे हैं वो।

19 फ़रवरी 2017.                ~~~ अजय।



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