Thursday 23 February 2017

जिनकी ख़ातिर...

जिनकी ख़ातिर ...


जिनकी ख़ातिर कभी दर्द की परवाह नहीं की,
उन्होंने मेरी भावनाओं की कभी वाह नहीं की।

ख़ुद को बेवक़ूफ़ सा ही, पेश किया हरदम,
अपने को बड़ा कहने की कोई चाह नहीं की।

सबको समतल ही राहें, मिलती रहें सदा,
मैंने पगडंडियों से, कभी डाह नहीं की।

बात-बात पर रुसवाइयों का सामना किया,
घूँट ज़हर के पिये मगर, उफ़-आह नहीं की।

चलता रहा सदा, अपने रास्तों पर मैं,
टूटे फूटे ही सही, मखमली  राह नहीं की।

आज टूट गया सब्र मगर, उस तीखे तीर पे,
जो चला दिया उसने, मुझे आगाह नहीं की।

23/02/2017.                 ~~~अजय।

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