Monday 13 February 2017

प्रेम दिवस की स्वच्छंदता

प्रेम दिवस की स्वच्छंदता...

क्यों मैं किसी तारीख़ का इंतज़ार करूँ,
क्यों न मैं हर रोज़ उनको प्यार करूँ,
क्या सिर्फ़ इसलिये, कि किसी के कार्ड बिकते हैं?
या फिर इसलिये, कि बिन ख़ुशबू के गुलाब बिकते हैं?
क्यों मैं किसी के ख़ज़ाने का भंडार भरूँ,
क्यों मैं प्रेम के नाम पर कोई व्यापार करूँ।

प्रेम इतना छोटा नहीं, जो किसी कार्ड में समा जाये,
प्रेम इतना हल्का भी नहीं, जो एक फूल से तौला जाये,
प्रेम तो एक एहसास है , मैं कैसे उसका भार करू,
प्रेम को दिल में बसाया है, तो क्यों मैं उसका प्रचार करूँ।

फ़रवरी चौदह हो या कि पंद्रह, इससे फ़र्क़ क्या,
आप मेरी बात को समझें, तो इसमें तर्क क्या,
क्यों मैं इसे एक दिन से बाँधने का विचार करूँ,
स्वच्छंद हूँ तो क्यों प्रेम की स्वच्छंदता पर अत्याचार करूँ,
क्यों मैं किसी तारीख़ का इंतज़ार करूँ,
क्यों न मैं हर रोज़ उनको प्यार करूँ....????????

10/14 फरवरी 2017.                                   ~~~ अजय।



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