Tuesday 28 November 2017

एक चेहरा ...

एक चेहरा ...

कर गया हमको यूँ दीवाना सा, 

एक चेहरा, जाना पहचाना सा...(२)

हम गुनगुनाते रहे, ताउम्र उसे,

बना के ख़ूबसूरत एक तराना सा...

मिला हमको वो नये शहर के जलसे में,

दबी हँसी, और अंदाज़ वो पुराना सा...

सुकूँ मिला, चलो हैं वो भी, यहीं ख़ुशी-राजी,

सज़ा के अपना, आशियाना सा...

बड़ी हसरत लिये बढ़े क़दम, मिलने उनसे,

चल दिये वो, बन के, अंजाना सा...।

एक चेहरा जाना पहचाना सा,

कर गया मुझको, यूं बेगाना सा,
27 Nov17.        ~~~ अजय

Friday 10 November 2017

ऐ दिल्ली.....

ऐ दिल्ली......

क़ैद शीशियों में अब न ज़हर रहा,
शहर अपना अब न ये शहर रहा,
कैसे कहूं कि ...कभी आइये न,
दिन न दिन, दोपहर न दोपहर रहा।

सांसें धौंकनी सी चलने लगीं,

हथेलियाँ आँख यूँ मलने लगीं,
मुश्किल दिन रात का फ़र्क़ हुआ,
न साँझ साँझ, न सुकून-ए-सहर रहा।

घर से निकलना भी, आज दूभर है,

बाग़ में टहलना भी, हो गया दुष्कर,
हवा रूठी, बारिशों ने किनारा किया,
वक्त बीमार है मगर, नगर न ये ठहर रहा।
10 नवंबर 17.                ~~~अजय।

Monday 8 May 2017

तुम मेरे न हुए...

तुम मेरे न हुए...

बातें बनी, शिकवे हुये मगर, कभी पूरे, फेरे न हुए...
कैसे कह दूँ मैं कि  तुम मेरे हो, जब कि तुम मेरे न हुए।

तुम मेघ बन के आये ...तो हवाओं में ख़ुशबू पली,

हवा ज़रा सी तेज़ हुई... तुम कहीं और उड़ चली,
हम तड़पते रहे, ...घायल पंछी बन कर,
और भटकते फिरे, ...कुछ वहशी बन कर,
मन के पंछी को हासिल, बसेरे न हुए....
कैसे कह दूँ मैं कि तुम मेरे हो, जब कि तुम मेरे न हुए।

फिर आँधियों का दौर सा चला,

बिजली से कमज़ोर दिल भी दहले,
उम्मीद को, तेरे भरोसे का दम जो था,
चाँद के इरादे, ...न मचले न बदले,
उम्मीदों की छत पे, रात के घनेरे न हुए....
कैसे कह दूँ मैं कि तुम मेरे हो, जब कि तुम मेरे न हुए।

अब थक गया है चाँद, रात भर के सफ़र से,
तकता रहा जो राह तेरी, खुली नज़र से, 
अब झपकने लगी है पलक, इसी असर से,
कब बंद हो जाये न जाने, ....नींद के डर से,
कितनी लंबी है रात, अब तक सवेरे न हुए ...
कैसे कह दूँ मैं कि  तुम मेरे हो, जब कि तुम मेरे न हुए।
08 मई 2017.                                ~~~ अजय।

Sunday 12 March 2017

एक दिल है...

एक दिल है...

होने लगा यक़ीन कि, एक दिल है उनके पास भी,

मेरी ग़ज़ल के सफ़ गुनगुनाने लगे हैं वो।

निकली हैं जो दिल से, सदाओं में असर है,

अब सुन के मेरा नाम , लजाने लगे हैं वो।

पहले था कोई और, उनके घर का रास्ता,

मेरी गली के रास्ते, जाने लगे हैं वो।

पहले गुँथे होते थे, चोटियों में परांदे,

चेहरे पे दो लटें, झुलाने लगे हैं वो।

नज़रें उठा के गुफ्तगूं, करते थे वो कभी,

देखते ही नज़र, हमको, झुकाने लगे हैं वो।

ये उम्र का असर है, या कि प्रेम का सुरूर,

छत पे आने के बहाने, खुद बनाने लगे हैं वो।

19 फ़रवरी 2017.                ~~~ अजय।



हम आये हैं मिलने

हम आये हैं मिलने...  

हम आये हैं मिलने...ये गुलदस्ते सम्हालिये, 
आपके जो हाथ में हों, वो रिश्ते सम्हालिये।

अपनों के बीच, तोल-मोल होता नहीं है,
साथ मिल के सब हँसें, तो कोई रोता नहीं है,
वक़्त एक सा चले, ये तो हो नहीं सकता,
भारी भी कभी मीत के बस्ते सम्हालिये...
आपके जो हाथ में हों, वो रिश्ते सम्हालिये।

बढ़ते हैं रोज भाव, नून, तेल, दाल के,
हम भूल रहे "हाट", अब चलन हैं मॉल के,
आसमान में उगती नहीं हैं, सब्ज़ियाँ, फ़सलें,
ठेले के माल भी सस्ते सम्हालिये...
आपके जो हाथ में हों, वो रिश्ते सम्हालिये।

हम ये नहीं कहते कि ऊँचे ख्वाब न लखें,
मन में जो आयें भाव, उनको शान से रखें,
अंबर की ख़्वाहिशें भी हों, और पाँव ज़मीं पर,
लड्डू के साथ गुड़ के भी खस्ते सम्हालिये...
आपके जो हाथ में हों, वो रिश्ते सम्हालिये।

हम आये हैं मिलने...गुलदस्ते सम्हालिये,
आपके जो हाथ में हों, वो रिश्ते सम्हालिये।

12 मार्च 2017                      ~~~अजय।

Thursday 23 February 2017

जिनकी ख़ातिर...

जिनकी ख़ातिर ...


जिनकी ख़ातिर कभी दर्द की परवाह नहीं की,
उन्होंने मेरी भावनाओं की कभी वाह नहीं की।

ख़ुद को बेवक़ूफ़ सा ही, पेश किया हरदम,
अपने को बड़ा कहने की कोई चाह नहीं की।

सबको समतल ही राहें, मिलती रहें सदा,
मैंने पगडंडियों से, कभी डाह नहीं की।

बात-बात पर रुसवाइयों का सामना किया,
घूँट ज़हर के पिये मगर, उफ़-आह नहीं की।

चलता रहा सदा, अपने रास्तों पर मैं,
टूटे फूटे ही सही, मखमली  राह नहीं की।

आज टूट गया सब्र मगर, उस तीखे तीर पे,
जो चला दिया उसने, मुझे आगाह नहीं की।

23/02/2017.                 ~~~अजय।

Saturday 18 February 2017

जबसे उसने....

जबसे उसने...

दर्द उसका भी तो हमसाया है,
जब से उसने हमें, भुलाया है।

जुबां खुलकर करे, न करे ये बयां
क़िस्सा चश्मे-नम ने, सुनाया है।

बस में उनके भी न था कि जो, ख़ुद निभ जाता,
टूटे वादे ने ये, जताया है।

नैन कब तक मिला के रखते वो,
शबाबे-हुस्न ने जिनको, यूं झुकाया है।

उदासियों में भी नूरे-लबरेज़ रहा करता था,
चेहरा वो आज क्यों, मुरझाया है।

रंज हमको नहीं उनसे, न कोई शिकवा है,
यादों ने जिसे हर साँस में, समाया है।

09 फरवरी 17.                   ~~~अजय।

Monday 13 February 2017

प्रेम दिवस की स्वच्छंदता

प्रेम दिवस की स्वच्छंदता...

क्यों मैं किसी तारीख़ का इंतज़ार करूँ,
क्यों न मैं हर रोज़ उनको प्यार करूँ,
क्या सिर्फ़ इसलिये, कि किसी के कार्ड बिकते हैं?
या फिर इसलिये, कि बिन ख़ुशबू के गुलाब बिकते हैं?
क्यों मैं किसी के ख़ज़ाने का भंडार भरूँ,
क्यों मैं प्रेम के नाम पर कोई व्यापार करूँ।

प्रेम इतना छोटा नहीं, जो किसी कार्ड में समा जाये,
प्रेम इतना हल्का भी नहीं, जो एक फूल से तौला जाये,
प्रेम तो एक एहसास है , मैं कैसे उसका भार करू,
प्रेम को दिल में बसाया है, तो क्यों मैं उसका प्रचार करूँ।

फ़रवरी चौदह हो या कि पंद्रह, इससे फ़र्क़ क्या,
आप मेरी बात को समझें, तो इसमें तर्क क्या,
क्यों मैं इसे एक दिन से बाँधने का विचार करूँ,
स्वच्छंद हूँ तो क्यों प्रेम की स्वच्छंदता पर अत्याचार करूँ,
क्यों मैं किसी तारीख़ का इंतज़ार करूँ,
क्यों न मैं हर रोज़ उनको प्यार करूँ....????????

10/14 फरवरी 2017.                                   ~~~ अजय।



Sunday 12 February 2017

नवका साल मुबारक

नवका साल मुबारक
 
सबको सबका हाल मुबारक,
सबको नवका साल मुबारक,
वक़्त वक़्त की बात है प्यारे,
सबको रोटी दाल मुबारक।

ठनठन कोई गोपाल मुबारक,
किसी को मोटा माल मुबारक,
कोई थरथर काँप रहा है,
किसी को पशमिन शॉल मुबारक।

कैश न हो तो ऐश भी न हो,
ऐसा नहीं है हाल मुबारक,
सीख लो अन्तर्जाल मुबारक,
उँगली फेर कमाल मुबारक।

लो प्रदेश का हाल मुबारक,
किसी को मोटी खाल मुबारक,
कहीं अमर,कहीं पाल मुबारक,
किसी को राम गोपाल मुबारक।  

हमको अपना हाल मुबारक,
सबको सबका साल मुबारक, 
वक़्त वक़्त की बात है प्यारे...
सबको रोटी दाल मुबारक।

(अन्तर्जाल = Internet)
३१ दिसम्बर २०१६           ~~~अजय।