Saturday 12 November 2016

मैं जिंदगी थी...

मैं जिंदगी थी...

वो तो वक्त था... गुजरता रहा,
मैं जिंदगी थी... चलती रही।

राह में लोग कई मिले,
कुछ ने ताने मारे, कुछ लगे गले,
कुछ को हम बुरे थे, कुछ को लगे भले,
कुछ दो-चार कदम, कुछ सालों साथ चले,
सुबह आती रही, शाम ढलती रही...
मैं जिंदगी थी... चलती रही।

कभी लड़खड़ाई मैं, तो कुछ बढ़े हाथ,
कुछ ने रंज किया, कुछ का मिला साथ,
कुछ ने वायदे किये, कुछ ने बनाई बात,
कुछ 'दिन' तक साथ रहे, छोड़ा जब आई 'रात',
एक शम्मा थी... जो जलती रही...
मैं जिंदगी थी... चलती रही।

थक कर बैठ जाती, वो मेरी फ़ित्रत न थी,
निढाल करती मुझे, ऐसी कोई ताकत न थी,
खार से खौफ़ खाना, भी मेरी सीरत न थी,
राह से लौट जाऊँ, ये मेरी हसरत न थी,
सफ़र जारी रहा, साँस पलती रही...
मैं जिंदगी थी... चलती रही।

09 नवम्बर 2016                   ~~~अजय।

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