Monday 24 October 2016

कुछ लिखा नहीं ?

कुछ लिखा नहीं ?...

शिकवा ये...कि मैंने,
बड़े दिनों से कुछ लिखा नहीं,
हाँ मैंने... कुछ लिखा नहीं,
क्योंकि लिखने लायक कुछ दिखा नहीं।

मैं ऐसा-वैसा भी नहीं ...
जो कुछ भी यूं ही लिखा करे,
मैं नहीं लिख पाता...
जब तक लिखने लायक न कुछ दिखा करे।

आज 'लिखने वालों' को देखिये न...
कुछ भी बे सिर-पैर की लिख रहे हैं,
और जो 'कुर्सी' को लालायित हैं...
वो 'बक-धुन' करने को आतुर दिख रहे हैं।

और विडम्बना भी देखिये...
कोई अपने साथियों के लिये ताबूत लख रहा है,
और ऐसे में अपना कहाने वाला भी,
'सिपाही' के पराक्रम का सबूत लख रहा है।

न जाने कैसी माटी से बने हैं ये लोग,
जिन्हें, कुर्सी के आगे कभी कुछ दिखा नहीं,
और मैं, इसी उधेड़-बुन में खो सा गया था...
इसलिये कुछ दिनों से कुछ लिखा नहीं।

23 अक्तूबर 16                ~~~अजय।