Friday 15 April 2016

चिराग

चिराग......

जलना तो नियति ही थी मेरी ...
घर का चिराग जो बना दिया सबने।


मैं उन्हें निराश भी करता कैसे ...
स्वधा का जरिया बना दिया सबने।


जिस पर यकीं किया आँख मूँद कर के...
बलि का बकरा बना दिया उसने।

जमानत बन कर छुड़ाते रहे जिनको...
क़ैद हमको ही दिला दिया उसने।

सूई की नोक से बचाने को सोचा जिनको...
पीठ में खंजर चुभा दिया उसने।

पालक भी नाम नहीं होती जज़्बात में अब...
आँख का आँसू सुखा दिया उसने।

छाता मान कर माथे पे रखा था जिसको...
ओला बन कर दगा दिया उसने।

24 अप्रैल 2016       ~~~अजय । 

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