Sunday 24 April 2016

परिचय

                                   परिचय
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पहचाना मुझे ?...नहीं न ?
इसी बात का तो दुख है ! कोई मुझे पहचानता ही नहीं । खैर, ... चलो मैं स्वयं ही अपना परिचय  कराता हूँ।
शक्ल-सूरत से टेढ़ा-मेढ़ा दिखने वाला मैं, साधारण सा प्रश्न चिन्ह हूँ भाई। किन्तु ब्रह्माण्ड का कोई अंश ...नहीं जो मुझसे अछूता हो। मैं सर्व व्यापी हूँ । यह चिन्ह (?) तो मात्र मेरा द्योतक है जो मेरे वजूद को दर्शाने का कार्य करता है और यह सिर्फ उनके लिए है जो पढ़ना-लिखना जानते हैं । लेकिन मेरे अमूर्त एवं सत्य रूप से कोई अछूता रह  ही नहीं सकता। बल्कि यदि यह कहें की हर व्यक्ति के मस्तिष्क में मेरा वास हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
पर्याय  मेरे कई अन्य नाम भी हैं, जिनसे लोग मुझे जानते और महसूस करते हैं, भले ही वे पढ़ना-लिखना जानते हों अथवा नहीं। जैसे: जिज्ञासा, कौतूहल, उत्सुकता इत्यादि।
उपस्थिति  जब से एक बच्चा जन्म लेता है,तभी से उससे मेरा नाता जुड़ जाता है। "मैं कौन हूँ ?", "मेरे        आस-पास कौन लोग और कौन सी वस्तुएं हैं ?", "मेरे इर्द-गिर्द इतने लोग कौन हैं?", "मैं लेटा क्यों हूँ ? अन्य लोग चल फिर क्यों रहे हैं ?", "मुझे भूख लगे तो मैं क्या करूँ ?", "माँ को कैसे पास बुलाऊँ ?".... इत्यादि सहस्र प्रश्न हैं जो बच्चा हर पल सोचता रहता होगा। तो.....? तो ये, कि ये प्रश्न ही तो हैं जो उसके विकास का कारक बनते हैं..... यानि की "मैं"। मैं  ही हूँ जो उसके विकास में मूल भागीदार हूँ। मैं ही तो हूँ, जो उसमें विकास की चिंगारी प्रस्फुटित करता हूँ जिसके फलस्वरूप बच्चा प्रत्येक कार्य सीखना प्रारम्भ करता है।
अतः मैं घर में भी हूँ और बाहर भी हूँ तथा हर उस स्थान पर उपस्थित हूँ जहां प्रकृति है । विद्यालय में मैं, प्रत्येक कक्षा में मैं , प्रत्येक विद्यार्थी के विचारों में मैं, अध्यापक की जुबान पर मैं, प्रत्येक पुस्तक के हृदय में और हर पाठ के अंत में मैं हूँ। मैं हर परीक्षा की रीढ़ हूँ। मेरे बगैर कोई परीक्षा या साक्षात्कार सम्पन्न ही नहीं हो सकता।
मैं मंदिर, मस्जिद,गिरिजा एवं गुरुद्वारे में हूँ। हर भक्त की प्रार्थना के कारण में हूँ। मैं ईश्वर के प्रत्येक वरदान का प्रारम्भ हूँ... "कहो वत्स , क्या चाहते हो ?"।
मैं हर चिकित्सक/वैद्य  की जांच की शुरुआत हूँ ... "बोलो, क्या कष्ट/ तकलीफ़ है ?", "कैसी तबीयत है?", "यह परेशानी कबसे है?", "क्या नित्य-क्रिया ठीक से संचालित हो रही है?" अथवा "पहले कभी ऐसी समस्या हुई थी क्या?"। चिकित्सा पद्धति का अंत भी मैं ही हूँ..... "सब कुछ तो ठीक था, किन्तु दवा ने असर क्यों नहीं किया?", पोस्ट मोर्टम- "मृत्यु का कारण क्या है / क्या था ?"।
मैं हर अभिभावक की चिंता में हूँ। "बच्चे कैसे पढ़ेंगे - क्या बनेंगे ?", "उनका शादी-व्याह कैसे होगा? बहू कैसी होगी? दामाद कैसा मिलेगा?", "क्या हमारे बच्चे बुढ़ापे में हमारी कद्र करेंगे ?"।
मैं हर प्रेमी-युगल की उत्सुकता में हूँ। "क्या वह भी मुझे उतना ही चाहता/चाहती है जितना कि मैं उसे ?", "क्या वो सिर्फ मेरा है?", "क्या वो मुझसे शादी करेगा/करेगी?", "उसके परिवार के लोग कैसे होंगे?"।
ज्योतिष-शास्त्र में विश्वास रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति के कौतूहल में मैं हूँ। कई बार तो मैं ऐसे रूप धर कर उपस्थित होता हूँ कि श्रोता भी विचलित होकर सोचने को बाध्य हो है कि , "क्या उसका विषय-ज्ञान अधूरा है ?" यही वह स्थिति है जब किसी नवीन खोज अथवा अन्वेषण की नीव पड़ती है। अतः यदि मैं यह कहूँ कि हर विकास-प्रक्रिया के आधार मे मैं ही हूँ तो कोई अतिशयोक्ति या बदबोलापन नहीं होगा।
विश्व के प्रत्येक अन्वेषण/खोज का मूल आधार हूँ मैं। अध्यात्म के गुह्यतम रहस्यों/मंत्रों के खोज की आधारशिला हूँ मैं। मैं ऋषियों व सन्यासियों के भटकाव का कारण हूँ। मैं ही वैज्ञानिकों के फलसफ़ों की उद्गम-स्थली  हूँ। कण-कण मे मेरा निवास है। निर्जीव-सजीव कोई भी मुझसे अछूता नहीं है।
क्या आप अब भी कहेंगे कि मुझे पहचाना नहीं ???????...... हा हा हा ....एक और प्रश्न? जी हाँ - मैं प्रश्न हूँ।
23 अप्रैल 2016                                                                                                                   ~~~ अजय। 

Friday 15 April 2016

चिराग

चिराग......

जलना तो नियति ही थी मेरी ...
घर का चिराग जो बना दिया सबने।


मैं उन्हें निराश भी करता कैसे ...
स्वधा का जरिया बना दिया सबने।


जिस पर यकीं किया आँख मूँद कर के...
बलि का बकरा बना दिया उसने।

जमानत बन कर छुड़ाते रहे जिनको...
क़ैद हमको ही दिला दिया उसने।

सूई की नोक से बचाने को सोचा जिनको...
पीठ में खंजर चुभा दिया उसने।

पालक भी नाम नहीं होती जज़्बात में अब...
आँख का आँसू सुखा दिया उसने।

छाता मान कर माथे पे रखा था जिसको...
ओला बन कर दगा दिया उसने।

24 अप्रैल 2016       ~~~अजय ।