Sunday 25 October 2015

मशहूर हो गया...

मशहूर हो गया...

न खुल के दिल ही तोड़ा, ना रूबरू हुये ,
ज़ालिम ये इल्म तेरा मशहूर हो गया।...ज़ालिम ये ...

हैरत है आज भी कि क्यों जुबां नहीं खुली,
बात मन में लिए मन की,  वो दूर हो गया।...ज़ालिम ये ...

उसने भुला दिया मगर ये कैसे मैं करूँ,
इस दिल के आगे मैं तो, मजबूर हो गया।...ज़ालिम ये ...

दिन रात सोचते रहे, कि क्या खता हुयी,
उसे चाहने में क्या बड़ा क़ुसूर हो गया ।... ज़ालिम ये ...

तुम झाँकते रहे दरीचों की आड़ से,
और कारवां मेरा नज़र से दूर हो गया।...ज़ालिम ये ...

24 अक्तूबर 2015          ~~~अजय॥

Saturday 10 October 2015

माँ कहाँ थी... तुम ही तो थे ।

माँ कहाँ थी... तुम ही तो थे...
(Sainwinians77 को समर्पित)

माह जुलाई, उन्नीस-सत्तर, 
अपनी चादर अपना बिस्तर,
बाबूजी जब छोड़ गये थे, 
तुम से नाता जोड़ गये थे,
कौन था साथी, कौन था रहबर ?....
माँ कहाँ थी......तुम ही तो थे....

बटन टाँकना ना था आया ,
वह भी तुमने ही सिखलाया,
गाँव छोड़ कर आए थे हम,
भीतर से गबराए थे हम,
उंगली, मेरी किसने थामी ?....
माँ कहाँ थी......तुम ही तो थे....

देखी थी कब कंठ-लंगोटी...?
तुम संग खानी सीखी रोटी,
चम्मच-कांटे थाम न पाते,
तुम जो हमको नहीं सिखाते,
फ़ीते जूतों के  बँधवाने ?....
माँ कहाँ थी........तुम ही तो थे .... 

रात ठिठुर कर सोया था जब, 
तनहाई में रोया था जब,
बिस्तर गीला कर बैठा था,
मैडम ने जब कान ऐंठा था,
ढाढस देने, साथ निभाने ?....
माँ कहाँ थी....... तुम ही तो थे....

दीवाली की रात वो काली,
सुलगी ज़ेब पटाखे वाली,
याद मुझे, वह मुड़ी कलाई ,
डॉक्टर से प्लास्टर चढ़वाई,
खुली शर्ट के बटन लगाने?....
माँ कहाँ थी....... तुम ही तो थे.... 

वो बचपन  था संजीदा सा,
अब पचपन है कुछ सीधा सा, 
हर कदम रोकता है अब तो,
तब बाँध नहीं कोई होता था,
कभी याराना कभी लड़े-भिड़े,
हम  एक-दूजे संग हुए बड़े, 
आया जब वक़्त बिछड़ने का.…
तो माँ कहाँ थी....... तुम ही तो थे.…  
बस तुम ही तो थे… हाँ भई तुम ही तो थे.… 

11 अक्तूबर 15             ...अजय॥