Wednesday 5 August 2015

यूं न संगदिली से मिलिये...

यूं न संगदिली से मिलिये... 

रोज मिलते रहे हैं ....... ख़यालात में,
अब न संगदिली से मिलिये, मुलाकात में।

चाँद को देख कर चाँदनी खिल गयी,
है सितारों को भी रोशनी मिल गयी,
मन भिंगा लाइये आज, बरसात में,
अब न संगदिली से मिलिये, मुलाकात में।

है खताओं को भी कुछ, सजा मिल चुकी,
है पतंगों की पांखें, शमा तल चुकी,
कट गयी जिंदगी मेरी गफ़्लात में,
अब न संगदिली से मिलिये, मुलाकात में।

आप को देख कर, कुछ उम्मीदें जगीं,
दिल धड़कने लगा, साँसें चलने लगीं,
हम यूं कब तक जियें कतरे-लमहात में,
अब न संगदिली से मिलिये, मुलाकात में।

रोज मिलते रहे हैं ....... ख़यालात में,
अब न तंगदिली से मिलिये, मुलाकात में.... 
यूं न संगदिली से मिलिये, मुलाकात में,
ज़रा रंगदिली से मिलिये, मुलाक़ात में। 

04 अगस्त 2015                     ~~~अजय। 

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