Sunday 19 July 2015

मुलाक़ात हो गयी...

मुलाक़ात हो गयी... 

जाने कैसे, ये अनजानी बात हो गयी,
वो मिले भी नहीं, ... मुलाक़ात हो गयी। 

ना वो सरगोश थे, ना मैं मदहोश था,
अपनी तनहाई में, मैं भी खामोश था,
ना कली कोई चटकी, न गुल ही खिले,
लब हिले भी नहीं,... और बात हो गयी, 
... वो मिले भी नहीं, मुलाक़ात हो गयी।

बंद आँखों में बस, कुछ खयालात थे,
छाए यादों की ड्योढ़ी, के लम्हात थे,
नींद कब आई आँखों में, किसको खबर,
सोते-जगते ये उजली सी रात हो गयी,
... वो मिले भी नहीं, मुलाक़ात हो गयी।

कौन कहता है नैनों में, पलते हैं ख़ाब,
मेरी आँखों में बसते हैं, बस एक आप,
दीन दुनिया की हमको, खबर ही कहाँ,
वो हंसें तो मेरा दिन, वरना रात हो गयी,
... वो मिले भी नहीं, मुलाक़ात हो गयी।

जाने कैसे, ये अनजानी बात हो गयी,
वो मिले भी नहीं, ... मुलाक़ात हो गयी॥ 

19 जुलाई 2015              ~~~ अजय। 

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